मृत्यु ही जीवन का एकमात्र अटल एवं विदित सत्य है, परन्तु इसे जीवनपर्यंत अस्वीकृत करते रहना भी अति साधारण मनुष्य भाव है| मृत्यु की ख़बर मिलना सहज है किंतु, उसकी अनुभूति मनुष्य के अपने उम्र के पड़ाव तथा मनोभावों पर निर्भर करती है| एक ही ख़बर यहाँ तीन छंदों में, जीवन उर्जा के धूमिल होने की गति के साथ, बदलती अनुभूति के रूप में प्रस्तुत की गई है|

Knowledge and realization are two important factors that help us meet a ‘New Self’ every day. And when one is introduced to who he is, he gets a chance to know what he can become. Here, the awakening poet has talked about helps us face the brighter side of life, keeping the shadows behind. It guides us towards the making of ourselves out of thousands of new possibilities. What it takes is mere realization. Each evolution, either inner or outer, begins with this kindling revival.

ખેડૂત ખેતરમાં બીજ રોપી દીધા બાદ, તે બીજનું કુંપળમાં પરિવર્તિત થવું માત્ર જોઈ કે નોંધી જ શકે છે. પરંતુ, બીજનું કુંપળ બનવું એ કેવું અનુભવાય એ તો માત્રને માત્ર ધરતી જ જાણે છે. વસુંધરાને જો વાચા ફૂટે તો એ ચોક્કસ કહે કે, રોપાયેલું બીજ ઉગી નીકળવાનાં પૂરજોર તલસાટ સાથે સૂર્ય-કિરણો, ધરતીનું સત્વ અને હવાનાં સ્પર્શે ક્ષણે ક્ષણે અંકુરિત થવા તરફ આગળ વધે ત્યારે ધારીણી ધરાને પોતાનો કણે કણ સજીવ થતો લાગે. સતત નિર્જીવ લાગતી રેણુ, ત્યારે જડમાં પણ ચેતનાનો સંચાર થતો અનુભવે એ કુદરતની જ કરામત છે.

प्रेम का शिखर वो जगह है जहां व्यक्ति स्वयं के अलावा और कुछ लेकर नहीं पहुँच सकता| व्यक्ति का अहंकार जब उसके व्यक्तित्व से प्रतिबिंबित होने लगे, तब वह अपने आसपास प्रसरते अंधकार को अपनाने लगता है| आतंरिक अंधकार ख़ुद से ख़ुद की पहचान नहीं होने देता और व्यक्ति भरे विश्वमें अकेला रहेना स्वीकार कर उसे जीवन बनाने लगता है| प्रस्तुत कविता ऐसे ही एक व्यक्तित्व की ज़ुबानी है की कैसे वह अहंकार के संग जीते हुए हरदिन अपने को एक नए आयाम में देख पाता है|

निदा फ़ाज़ली जी का एक शेर है, “एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे, मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा!” ज़िंदगी के मायने और क्या है ये चाहे पता ना चल पाए तो कोई बात नहीं, खुद से एक मुलाकात और खुद से खुद की पहेचान ज़रूरी है| सच - झूठ, सही – गलत, क्यों, क्या से ऊपर उठकर, मुक्त मन से कुछ लम्हों के लिए ही सही स्वयं से मिलने की इस कविता में प्रस्तुत कामना आप भी रखते है क्या?