गुलज़ार साहब ने लिखा है कि, “चारागर लाख करें कोशिश-ए-दरमाँ लेकिन, दर्द इस पर भी न हो कम तो ग़ज़ल होती है!” इसी दर्द की दवा ढूंढ रहा ‘मुसाफ़िर’ आपसे यहाँ कुछ कहना चाहता है|
ख्यालों के मोती पिरोता रहा,
फिर तन्हाई में आशिक़ रोता रहा॥
खज़ाने से कम न कहानी थी वो,
उसे ये वहम कि वो खोता रहा॥
काट डाली फसल, सींचा बरसों जिसे,
तुख्म-ए-वफ़ा फिर भी बोता रहा॥
शजर-ए-मोहब्बत सूखा वीरान सा,
अश्क़ों से ज़मीं को भिगोता रहा॥
वो महताब निकला चीर कर हर भंवर,
सैलाब जब जब उसको डुबोता रहा॥
पल पल जीते रहने की कोशिश भी रही,
वक़्त भी अपने नश्तर चुभोता रहा॥
बह गए हर्फ़ सारे बह गयी दास्तान,
जो फ़साना वो ताउम्र संजोता रहा॥
* तुख्म-ए-वफ़ा- Seeds of Loyalty, शजर-ए-मोहब्बत-Tree of Love, नश्तर- Scalpel
Wah…kya baat hai…dil khush ho gaya…
Wow…… It’s great Deepak ??????
Thanks for the motivation Punita.
Good job
Thanks Dilip.
Thanks Kishor, I am glad you liked it.
Wow , that’s nice deepak ji ???
Thanks Suchitra Ji, means a lot.
“वो महताब निकला चीर कर हर भंवर,
सैलाब जब जब उसको डुबोता रहा॥”
Just wow….
Great to have you here!
Keep writing!
Thats my favorite line. Thanks Swati.