महाभारत – ‘पंचमवेद’ कहे जानेवाले इस महाकाव्य के सभी पात्र मनुष्य के आतंरिक विश्व के प्रतिबिंब है| यह स्पष्ट दर्शाता है कि यदि मनुष्य चाहे तो, अच्छाई या बुराई किसीके भी शिखर तक पहुँच सकता है| परन्तु, हर बार सही या ग़लत का चुनाव करते वख्त खुद को अगर श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया जाए तो, आखिर में वह कर्म आपके लिए धर्म ही बन जाएगा|
युगों से सुनते है महागाथा महाभारत की,
अपने धर्म और अपने राजा भरत की,
आज सुना दूँ हर मनुष्य के भीतर;
उठती कथा एक मन के महाभारत की।
अठारह अक्षौहिणी सेना लड़े कुरुक्षेत्र में;
मन बनाएँ कई सेना कल्पना के नेत्र में,
कौरवों से शत लघु विचार इस मन को सताएँ,
पांडवों सी पाँच इन्द्रियां नतमस्तक हो जाएँ।
कभी द्रौपदी सा प्रतिशोध मन को जलाएँ;
तो कभी माता कुंता-सा ममत्व हृदय को रुलाएँ,
कभी आकांक्षाएँ अपनी धृतराष्ट्र बन जाएँ;
और कभी गिरते संभलते स्वानुभव भिष्म बन जाएँ।
मन की रचाई इस राजनीति में दिल से हार मानूं;
मुझ में ही शकुनि और मुझ में ही विदूर जानूँ,
इस महायुद्ध का मैदान खुद में ही पाऊँ,
कभी दुर्योधन तो कभी अर्जुन बन जाऊँ।
अंत में अपने ही सुसंस्कारों का रथ सजाऊँ;
पावन आत्मा से कृष्ण को सारथी बनाऊँ,
अंतरात्मा से दिव्य चक्षु मैं पालूँ, और
जीवन को कुछ इस तरह सार्थक बनालूँ|
अद्भुत काव्य !
अंत में अपने ही सुसंस्कारों का रथ सजाऊँ;
पावन आत्मा से कृष्ण को सारथी बनाऊँ,
Really amazing concept. So good!
Thank you so much!