जैसे आकस्मिक
कोई धुन कोई गीत पुराना बजे
और फिर वही
संवेदना के द्वार खुल जाए
वैसे ही उठती है
एक लहर
जब कोई सुनाएं
किसी के मृत्यु की खबर
जैसे गरजते बादलों से
बरसती है बारिश बेहिसाब
और बिजली के चमकने से
झूम उठे रात का प्रहर
फिर सुबह की धूप में
वैसे ही सूख जाए सारा शहर
जैसे कोई सुनाएं
किसी के मृत्यु की खबर
जैसे दिन के उजाले में संवरती है
जिंदगी किसी हसीं ख्वाब की तरह
फिर यादें ही तो रह जाती है रोशन
खलाओ में आफताब की तरह
इसी रोशनी में खो जाते हे साये
जल जाती है परछाइयां
वैसे ही न रहे पाए कोई वजूद
हयात से हो जाता हूं बेखबर
जब कोई सुनाएं
किसी के मृत्यु की खबर