शलभ शिखा तक न पहुंच पाया
न तो वो जल पाया
न तो वो मिट पाया
तिमिर में ही तृप्त
नया साल मनाया
राह जो भटक गए थे वह
न प्रणय पथ पर लौट पाया
न तो आनंद की वंचना की
न कभी शोक से लौट पाया
समय की बहती लहर में
न कभी अहम को गिराया
न कभी खुद को ऊपर उठाया
स्वरूप के स्वप्न में मुग्ध
नया साल मनाया
बरस बीतते गए पन्नों पर पर
गुजरती जिंदगी का ख़याल न आया
लोग मिलते रहे बिछड़ते रहे
कभी खुद से मिलने का ख़याल न आया
न कभी सवाल कर पाया
न कभी जवाब ढूंढ पाया
न बदला मैं, न तुम, न हमारा वक्त बदल पाया
यह सिलसिला हर साल दोहराया
समय की बहती धारा में रहकर स्थिर
नया साल मनाया||