नया साल – Hindi Poem | By Japan Vora

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प्रेम का शिखर वो जगह है जहां व्यक्ति स्वयं के अलावा और कुछ लेकर नहीं पहुँच सकता| व्यक्ति का अहंकार जब उसके व्यक्तित्व से प्रतिबिंबित होने लगे, तब वह अपने आसपास प्रसरते अंधकार को अपनाने लगता है| आतंरिक अंधकार ख़ुद से ख़ुद की पहचान नहीं होने देता और व्यक्ति भरे विश्वमें अकेला रहेना स्वीकार कर उसे जीवन बनाने लगता है| प्रस्तुत कविता ऐसे ही एक व्यक्तित्व की ज़ुबानी है की कैसे वह अहंकार के संग जीते हुए हरदिन अपने को एक नए आयाम में देख पाता है|

शलभ शिखा तक न पहुंच पाया

न तो वो जल पाया

न तो वो मिट पाया

तिमिर में ही तृप्त

नया साल मनाया

राह जो भटक गए थे वह

न प्रणय पथ पर लौट पाया

न तो आनंद की वंचना की

न कभी शोक से लौट पाया

समय की बहती लहर में

न कभी अहम को गिराया

न कभी खुद को ऊपर उठाया

स्वरूप के स्वप्न में मुग्ध

नया साल मनाया

बरस बीतते गए पन्नों पर पर

गुजरती जिंदगी का ख़याल न आया

लोग मिलते रहे बिछड़ते रहे

कभी खुद से मिलने का ख़याल न आया

न कभी सवाल कर पाया

न कभी जवाब ढूंढ पाया

न बदला मैं, न तुम, न हमारा वक्त बदल पाया

यह सिलसिला हर साल दोहराया

समय की बहती धारा में रहकर स्थिर

नया साल मनाया||

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