आज स्वतंत्रता दिवस के इस अवसर पर,अटल बिहारी बाजपाईजी के इन शब्दों के अलावा कोई और शब्द हमारा जज़्बा बयां नहीं कर पाते, “उजियारे में, अंधकार में, कल कहार में, बीच धार में, घोर घृणा में, पूत प्यार में, क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में, जीवन के शत-शत आकर्षक, अरमानों को ढलना होगा| कदम मिलाकर चलना होगा|”
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समयचक्र जब घुम गया तो,
एक अनूठा दौर आया है-
मेरी ज़मीं का उजियारा,अब तेरे चाँद का मोहताज नहीं होगा;
बीत गया वो कल की बात थी,वही नज़ारा आज नहीं होगा|
मुस्कानों के खेत खिलेंगे,
फूल से कोमल उन चेहरों पर,अब असुअन का राज नहीं होगा;
बीत गया वो कल की बात थी,वही नज़ारा आज नहीं होगा|
बदल रहे है नज़र-नज़रिया,
आने वाले कल की सुबह का,अब वो पुराना अंदाज़ नहीं होगा;
बीत गया वो कल की बात थी,वही नज़ारा आज नहीं होगा|
भाल लाल अब सजनेवाला,
तमस का काला कपड़ा,अब इस दुल्हन का साज नहीं होगा;
बीत गया वो कल की बात थी,वही नज़ारा आज नहीं होगा|
सपनों के जन्नत की हूरके,
सिर पे अमन का मुकुट सजेगा, ख़ौफ़ का ताज नहीं होगा;
बीत गया वो कल की बात थी,वही नज़ारा आज नहीं होगा|
भूखे पेट का मज़हब क्या है?
चूल्हे चढ़ी उस इक रोटी से, बड़ा कोई सरताज नहीं होगा;
बीत गया वो कल की बात थी,वही नज़ारा आज नहीं होगा|
*मोहताज – dependent,असुअन – tears, भाल – forehead, तमस – darkness, साज – ornament, हूर – a fairy, मज़हब – religion, सरताज – God (here)
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