निदा फ़ाज़ली जी का एक शेर है, “एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे, मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा!” ज़िंदगी के मायने और क्या है ये चाहे पता ना चल पाए तो कोई बात नहीं, खुद से एक मुलाकात और खुद से खुद की पहेचान ज़रूरी है| सच – झूठ, सही – गलत, क्यों, क्या से ऊपर उठकर, मुक्त मन से कुछ लम्हों के लिए ही सही स्वयं से मिलने की इस कविता में प्रस्तुत कामना आप भी रखते है क्या?
